
भोपाल। मध्य प्रदेश में किसानों के कल्याण के लिए बनाए गए उर्वरक विकास कोष (FDF) का पैसा 2017-18 से 2021-22 तक ज़्यादातर गाड़ियों के पेट्रोल और रखरखाव पर खर्च हो गया! यह चौंकाने वाला खुलासा गुरुवार को विधानसभा में पेश CAG रिपोर्ट में हुआ।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे पांच साल में पंजीयक एवं सहकारी संस्थाएं ने राज्य और ज़िला स्तर पर 5.31 करोड़ रुपए के FDF का 90% यानी करीब 4.79 करोड़ रुपए सिर्फ गाड़ियों के इस्तेमाल, ड्राइवर के वेतन और रखरखाव पर खर्च कर दिए। किसानों के प्रशिक्षण, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान उर्वरकों पर छूट या कृषि उपकरण देने जैसे वास्तविक कार्यों पर केवल 5.10 लाख रुपये की मामूली राशि खर्च की गई।
राज्य स्तर पर खर्च किए गए 2.77 करोड़ रुपए में से 2.25 करोड़ रुपए 20 वाहनों पर खर्च किए गए, जबकि किसानों के लिए बनाए गए इस कोष का उद्देश्य कठिन समय में उनकी मदद करना, प्रशिक्षण प्रदान करना और प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) का विकास करना था।
ऊंचे दामों पर खरीदा गया उर्वरक कम दामों पर बेचा गया
CAG ने यह भी कहा कि मार्कफेड (मध्य प्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ) ने उर्वरकों (DAP, MOP) पर आपूर्तिकर्ता छूट का लाभ किसानों को नहीं दिया। इससे किसानों पर 10.50 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा। इसके अलावा रबी सीजन 2021-22 में ऊंचे दामों पर खरीदे गए उर्वरक को कम दामों पर बेचकर मार्कफेड को 4.38 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
कैग ने मुख्य सचिव के जवाब को खारिज किया
रिपोर्ट में कहा गया है कि फरवरी 2024 में सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव ने कहा था कि उर्वरक विकास निधि (एफडीएफ) का उद्देश्य उर्वरकों के वितरण की निगरानी और पर्यवेक्षण करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राज्य और जिला स्तर के अधिकारियों को भंडारण और वितरण की निगरानी, निरीक्षण और पैक्स व मार्कफेड गोदामों के निरीक्षण की सुविधा प्रदान की जाती है। इसके तहत आयुक्त, सहकारिता और उनके अधीनस्थ कार्यालयों के लिए वाहन खरीदे गए और धनराशि का उपयोग “उद्देश्यानुसार” किया गया।
हालांकि, कैग ने विभाग के प्रमुख सचिव के इस जवाब को अस्वीकार्य बताया। उन्होंने कहा कि अधिकांश धनराशि केवल वाहनों के उपयोग पर ही खर्च की गई और एफडीएफ के अन्य प्राथमिक उद्देश्यों को प्राथमिकता नहीं दी गई।
सबसे गंभीर बात यह है कि राज्य सरकार ने निर्धारित फार्मूले के अनुसार उर्वरक की आवश्यकता का आकलन नहीं किया। न तो उसने जिला स्तर से इनपुट लिया, न ही मिट्टी की स्थिति का आकलन किया और न ही फसलवार आवश्यकता का हिसाब रखा।
पिछले साल के खपत के आंकड़ों के आधार पर यह तय किया गया कि एक साल में कितनी उर्वरक की ज़रूरत है। कैग के अनुसार, 2017-22 के बीच सब्जियों और बागवानी फसलों में उर्वरक का इस्तेमाल तो हुआ, लेकिन उनके रकबे को कभी भी आकलन में शामिल नहीं किया गया।
कैग की निष्पादन लेखा परीक्षा रिपोर्ट में 2017-18 से 2021-22 तक मध्य प्रदेश में उर्वरक प्रबंधन और वितरण की जाँच शामिल है। इस दौरान राज्य में तीन सरकारें रहीं, जिनमें वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली दो भाजपा सरकारें और कमलनाथ के नेतृत्व वाला 15 महीने का कांग्रेस शासन शामिल है।