
नई दिल्ली। देवेंद्र फडणवीस द्वारा हल्के-फुल्के अंदाज़ में उद्धव ठाकरे को “सत्ता पक्ष में आने” का निमंत्रण देने के एक दिन बाद शिवसेना यूबीटी प्रमुख ने गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से मुलाकात की। फडणवीस और ठाकरे के बीच यह मुलाकात विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कार्यालय में हुई। उनकी मुलाकात लगभग 20 मिनट तक चली।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!बुधवार को महाराष्ट्र विधानसभा में मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा था कि उद्धव जी इस तरफ (सत्तारूढ़ दल) आने की गुंजाइश के बारे में सोच सकते हैं और उस पर अलग तरीके से विचार किया जा सकता है, लेकिन हमारे लिए वहां (विपक्ष) आने की कोई गुंजाइश नहीं बची है।
दरअसल, शिवसेना और भाजपा का गठबंधन 2014 तक फलता-फूलता रहा। लेकिन 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान सीटों के बंटवारे को लेकर हुए विवाद के कारण उनकी 25 साल की साझेदारी में खटास आ गई। और आखिरकार 2019 में चुनाव जीतने के बाद उद्धव ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस से हाथ मिला लिया। हालांकि, फडणवीस ने ढाई साल बाद अपना बदला ले लिया, जब एकनाथ शिंदे ने उद्धव के खिलाफ बगावत कर दी और शिवसेना को तोड़ दिया। तब से फडणवीस शिंदे सेना के साथ हैं।
एकनाथ शिंदे ने 2022 के तख्तापलट के बाद दो साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। 2024 में उनके गठबंधन को राज्य के लोगों से भारी जनादेश मिलने के बाद फडणवीस को वापस बागडोर सौंपने के लिए अनिच्छुक थे।
फडणवीस का बयान ऐसे समय में आया है, जब उद्धव ठाकरे ने तीन-भाषा नीति को लेकर भाजपा और शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार पर अपने हमले तेज कर दिए हैं और जब अलग हुए ठाकरे चचेरे भाइयों के बीच सुलह की अटकलें जोर पकड़ रही हैं। यूबीटी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के बीच संभावित सहयोग को लेकर अटकलें बढ़ रही हैं। खासकर 5 जुलाई के बाद जब राज और उद्धव ठाकरे ने दो दशकों में पहली बार एक मंच साझा किया।
महाराष्ट्र सरकार के राज्य के स्कूलों में कक्षा 1 से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने वाले दो विवादास्पद आदेशों को पलटने के फैसले के संयुक्त उत्सव के दौरान हुआ। उन्होंने पहले ही संभावित सुलह की चर्चाओं को हवा दे दी है, अपने पिछले मतभेदों को तुच्छ बताया है और ज़ोर देकर कहा है कि मराठी मानुष के हित में एकजुट होना मुश्किल नहीं होना चाहिए। इसके तुरंत बाद उद्धव ठाकरे ने भी इसी तरह का सुर दोहराया और कहा कि वह सुलह के लिए तैयार हैं—बशर्ते इसमें महाराष्ट्र के हितों के ख़िलाफ़ काम करने वाले लोग शामिल न हों।