
भोपाल। मध्य प्रदेश में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामलों में समय पर आरोप—पत्र दाखिल करने में जिला पुलिस बल पिछड़ रहे हैं। पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए जिला पुलिस कप्तानों को चेतावनी दी है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!दरअसल, हाल ही में एक आकलन में पता चला है कि एक भी ज़िले ने 100% अनुपालन हासिल नहीं किया है। कुछ ज़िले 80% तक मामलों में समय-सीमा के भीतर आरोप—पत्र दाखिल कर रहे हैं, जबकि अन्य केवल 65% मामलों में ही यह कर पा रहे हैं।
2012 में पारित पॉक्सो अधिनियम बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए लाया गया था। पुरानी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आरोपी की गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर आरोप—पत्र दाखिल करना आवश्यक था।
हालांकि, नई भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत समय सीमा संशोधित कर दी गई है। पुलिस को अब FIR दर्ज होने के 60 दिनों के भीतर आरोप—पत्र दाखिल करना होगा।
पुलिस मुख्यालय की महिला शाखा ने एक आंतरिक कार्य-निष्पादन समीक्षा के दौरान पाया कि कई जिले नए कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए इस समय सीमा को पूरा करने में लगातार विफल रहे हैं।
एक भी जिला समय पर 100% आरोप-पत्र दाखिल करने की दर तक नहीं पहुंच पाया है। इसका अभियोजन दर पर असर पड़ रहा है और अंततः न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
पुलिस मुख्यालय ने देरी के लिए की ज़िलों की खिंचाई
महिला सुरक्षा महानिदेशक सभी ज़िलों को समय-सीमा का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने चेतावनी दी, अगर वे समय पर आरोप-पत्र दाखिल करने में विफल रहते हैं, तो संबंधित अधिकारी ज़िम्मेदार होंगे और उनके अनुसार कार्रवाई की जाएगी। साथ ही कहा है कि आरोप-पत्र तैयार करने में देरी से अभियोजन प्रक्रिया पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे दोषसिद्धि सुनिश्चित करने की प्रभावशीलता कम हो जाती है।