
बेंगलुरु। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को एलन मस्क की कंपनी एक्स की केंद्र सरकार के खिलाफ याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि सोशल मीडिया सामग्री को विनियमित करना महत्वपूर्ण है, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराधों से जुड़े मामलों में। उन्होंने कहा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) एक नागरिक का अधिकार है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं। अमेरिकी कानून और फैसले सीधे भारतीय संविधान पर लागू नहीं हो सकते।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!एक्स ने मार्च में भारत सरकार के खिलाफ एक याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि भारत सरकार के अधिकारी एक्स की सामग्री को अवरुद्ध कर रहे हैं, जो आईटी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) का दुरुपयोग है।
सोशल मीडिया कंपनियों का तर्क है कि अगर सामग्री को इतनी आसानी से हटा दिया गया, तो वे उपयोगकर्ताओं का विश्वास खो देंगे, जिसका असर कंपनी के कारोबार पर पड़ेगा। इस बीच, केंद्र सरकार ने कहा कि अवैध सामग्री को हटाना ज़रूरी है।
केंद्र सरकार ने कहा कि अवैध सामग्री अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि अवैध या गैरकानूनी सामग्री को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समान सुरक्षा नहीं दी जा सकती। सरकार ने तर्क दिया, सोशल मीडिया कंपनियों को दी जाने वाली सुरक्षा तभी लागू होती है जब वे शिकायत मिलने पर तुरंत अनुचित सामग्री हटा दें। X अपने उपयोगकर्ताओं की ओर से चिलिंग इफेक्ट का हवाला देकर तर्क नहीं दे सकता।
सेफ हार्बर का मतलब है कि कंपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं द्वारा पोस्ट की जाने वाली सामग्री के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार नहीं होगी। चिलिंग इफेक्ट का मतलब है कि लोग कानून के डर से अपने विचार व्यक्त करने से कतराते हैं।
X ने कहा कि सरकार सहयोग पोर्टल के ज़रिए सामग्री हटा रही है। X ने आरोप लगाया कि सरकार ‘सहयोग’ नामक पोर्टल के ज़रिए सामग्री को ब्लॉक करती है। भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र इस पोर्टल का संचालन करता है। पुलिस और सरकारी विभाग गृह मंत्रालय के आदेश पर सामग्री हटाने के आदेश जारी करते हैं। एक्स ने कहा। सहयोग पोर्टल एक ‘सेंसरशिप पोर्टल’ की तरह काम कर रहा है, इसलिए इसे नियमों के अनुसार उठाया गया कदम नहीं माना जा सकता।