एमपी की 'लाडली बहनों' के चेहरे पर आएगी मुस्कान, खाते में आने वाली है किस्त जानें कब निकाल सकती हैं?
भोपाल. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने केद्र की रिपोर्ट के मुताबिक नल-जल योजना में उजागर हुई गड़बड़ियों पर प्रदेश सरकार पर सवाल उठाते हुये कहा कि केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार जल जीवन मिशन के तहत महज दस्तावेजी खानापूर्ति कर शहर एवं ग्रामीण जनता के साथ छलावा कर रही है।
जल जीवन मिशन के तहत ग्रावों में नल से जल पहुंचाने की योजना को ढकोसला बताते हुए पटवारी ने कहा कि प्रदेश के अधिकांश ग्रामीण अंचलों सहित खासकर बुंदेलखंड में इस योजना में भारी भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस योजना में तकनीकी देखरेख की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों के पास हैं लेकिन बड़े पैमाने पर हो रहे भ्रष्टाचार के कारण यह योजना पूरी तरह से ठप्प पड़ गयी है।
पटवारी ने कहा कि जल जीवन मिशन में के तहत मप्र के 1271 गांवों का सर्वे कराया गया जिसमें से 217 गांवों में नल से जल नहीं मिला। एक छोटे सर्वें में ही इतनी बड़ी खामियां सामने आयी तो प्रदेश के सभी गांवों की स्थिति क्या होगी, इसका महज अंदाजा लगाया जा सकता है।
पटवारी ने कहा कि मध्य प्रदेश में जल जीवन मिशन की गड़बड़ियां उजागर होने लगी हैं। केंद्र की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि जिन गांवों में एक भी नल नहीं लगा, वहां मिशन के तहत काम पूरा होना दिखा दिया गया है। वहीं, जिन गांवों में इस मिशन के तहत पानी सप्लाई हो रहा है, उनमें से कई जगह पीने का पानी साफ नहीं है। यानि यह योजना केवल कागजी खानापूर्ति कर सरकार का पेट भरने और जनता को धोखा देने के अलावा कुछ नहीं है।
पटवारी ने कहा कि सच्चाई यह है कि दरअसल, 2024 में भी मिशन का काम अधूरा देखकर केंद्र ने जुलाई माह में इसकी जमीनी स्तर पर जांच कराई, जिसके लिए एक निजी एजेंसी को जांच का जिम्मा सौंपा गया, जिसमें मप्र के 1,271 सर्टिफाइड गांवों में हुए कार्यों की जांच का जिम्मा सौंपा गया। जिसमें केवल 209 गांवों में सभी जरूरी मानक पूरे पाए गए। वहीं, 217 गांवों में नल कनेक्शन तो हुए, लेकिन पानी की सप्लाई नहीं हो रही है।
खास बात यह है कि 9 जिलों के 13 गांव ऐसे हैं जहां नल के कनेक्शन तक नहीं मिल पाए हैं, जबकि यहां कार्य पूरा होना बताया है। जल परीक्षण के लिए जो सैंपल लिए, उनमें 48.70 प्रतिशत सैंपल जीवाणु पैरामीटर में और 50.80 प्रतिशत सैंपल रासायनिक पैरामीटर में उपयुक्त नहीं पाए गए। सबसे खराब स्थिति अलीराजपुर और सिंगरौली जिलों के गांवों की है।
पटवारी ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक, 778 गांवों के पानी की जांच में 390 सैंपल अमानक पाए गए, जिनमें बैक्टीरियल कंटामिनेशन मिला है। इससे मिशन के तहत कार्य पूरे होने के जरूरी दस्तावेजों की प्रमाणिकता पर भी सवाल खड़े हुये हैं। खास बात यह है कि यह सर्वे जुलाई में, यानी बारिश के दौरान किया गया था, जब भूजल स्तर बेहतर होता है। केंद्र की रिपोर्ट मिलने के बाद मप्र के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) ने भी प्रमुख अभियंता से जवाब तलब किया योजना पर सवाल उठाए है।
पटवारी ने कहा कि सरकार द्वारा इस योजना पर पहले ही बड़े पैमाने पर धन राशि खर्च कर भ्रष्टाचार किया गया रहा है और अब फिर से धन राशि खर्च कर व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। ग्राम पंचायतों सौंपी जिम्मेदारी और तकनीकी देखरेख और छोटी-बड़ी खराबी आने के कारण यह योजना पूरी तरह ठप्प हो जाती है और योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है, जिसका बोझ प्रदेश की जनता पर पड़ता है। सरकार इस नल-जल योजना की खानापूर्ति और ढकोसला बंद करें। साथ ही केंद्र सरकार को पुनः पूरी निष्पक्षता से इसकी जांच कराना चाहिए।
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