एमपी की 'लाडली बहनों' के चेहरे पर आएगी मुस्कान, खाते में आने वाली है किस्त जानें कब निकाल सकती हैं?
उज्जैन/भोपाल. इस बार दीपावली को लेकर असमंजस दूर नहीं हो रहा है। मध्यप्रदेश में ज्योतिषियों के एक राय नहीं होने के चलते दिवाली दो दिन 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को मनाई जाएगी। हालांकि, दिवाली के बाद होने वाली गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को ही होगी। भाईदूज भी एक ही दिन 3 नवंबर को मनाया जाएगा।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला के मुताबिक, कार्तिक मास के कृष्णपक्ष में आने वाली एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस तिथि पर व्रत करने के साथ माता लक्ष्मी की विशिष्ट साधना शुरू की जा सकती है। यह निरंतर 5 दिन चलती है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी सोमवार 28 अक्टूबर को है। तिथि के अनुक्रम में अंतर होने से इसी दिन मध्याह्न में द्वादशी तिथि रहेगी। यह गोवत्स द्वादशी कहलाती है। एकादशी का व्रत और गोवत्स का पूजन भी इसी दिन किया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक पांच पर्व विशेष माने जाते हैं। इनमें रमा एकादशी, गोवत्स द्वादशी, धन्वंतरि जयंती (धनतेरस), रूप चौदस और दीपावली शामिल हैं। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, तिथि की गड़बड़ के कारण इनमें परिवर्तन की संभावना भी बन जाती है।
31 को सुबह रूप चौदस, शाम को दिवाली
ज्योतिषाचार्य ने कहा, 31 अक्टूबर की सुबह रूप चौदस, शाम को दिवाली का पर्व काल रहेगा। कुछ पंचांगों में 1 नवंबर को दिवाली दर्शाई गई है। ऐसा स्थान और ज्योतिषीय गणित के अंतर की वजह से है। शास्त्रीय अभिमत की कुल गणना करें तो 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाना शास्त्र सम्मत है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और राजस्थान के ज्योतिष विभाग के जानकारों का भी मत 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाने का है।
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की प्रदोष इस बार मंगलवार के दिन है, यह भौम प्रदोष के नाम से जानी जाती है। इसी दिन त्रयोदशी का भी प्रभाव रहने से धनवंतरि जयंती (धनतेरस) का त्योहार भी रहेगा। मृत्यु के देवता यम को दीपदान कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक करने का विधान है। लेकिन एकादशी से अमावस्या तक भी इसे किया जा सकता है।
ज्योतिषाचार्य का कहना है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक एक महीने लगातार शाम को प्रदोष काल में छत पर दीपक जलाना चाहिए। यह अकाल मृत्यु को टालता है। वहीं, आर्थिक प्रगति के लिए कुबेर और अष्टविध लक्ष्मी की पूजा की जाती है। छत पर अष्टदल बनाकर इसके बीच में तिल के तेल का दीपक लगाकर तीनों का पूजन करना चाहिए।
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