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ट्रंप ने 10 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाला

नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने करीब 10 हजार लोगों को नौकरी से निकाल दिया। शुक्रवार को लिए इस फैसले के पीछे कथित फिजूलखर्ची का हवाला दिया गया। अमेरिका में कुल 23 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। इससे पहले 75 हजार लोगों ने ट्रंप और मस्क का बायआउट ऑफर (स्वेच्छा से नौकरी छोड़ने पर भुगतान) स्वीकार करते हुए मर्जी से सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। ट्रंप ने 11 फरवरी को कार्यकारी आदेशों पर साइन किए थे, जिसमें छंटनी और कई पदों को खत्म करने के तरीकों को तलाशने के आदेश दिए गए थे। ट्रंप का कहना है कि केंद्रीय सरकार काफी कर्ज में डूबी हुई है और सरकार को बर्बादी, धोखाधड़ी की वजह से बहुत ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ा है। पिछले साल के 1.8 ट्रिलियन डॉलर घाटे के साथ हमारे देश पर 36 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है। 
अमेरिका में सेना में काम कर चुके लोग और उनके परिवार की देखरेख के लिए वेटरन विभाग है। इसके तहत उन लोगों के स्वास्थ्य और देखभाल की सुविधाएं दी जाती हैं। वेटरन विभाग ने घोषणा की है कि उसने 1,000 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है, जबकि अमेरिकी वन सेवा ने 3,000 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की योजना बनाई है।
सूत्रों ने बताया कि पिछले 48 घंटों में पूरे सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्तगी संबंधी ईमेल भेजे गए हैं, जिनमें से अधिकतर हाल ही में नियुक्त कर्मचारी हैं, जो अभी भी प्रोवेशन पीरियड में हैं। आंतरिक, ऊर्जा, सैन्य मामले, कृषि, स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभागों सहित कुछ एजेंसियों ने छोटे पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों को निशाना बनाया है। कई स्वतंत्र संस्था को तो बंद तक कर दिया गया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 280,000 सरकारी कर्मचारियों को दो साल से भी कम समय पहले काम पर रखा गया था, जिनमें से अधिकांश अभी भी प्रोवेशन पर हैं, जिससे उन्हें बर्खास्तगी का अधिक खतरा है। हालांकि 14 राज्यों के नागरिक ट्रंप प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ अदालत पहुंच गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मस्क अपने अभियान को प्रबंधित करने के लिए कम सरकारी अनुभव वाले युवा इंजीनियरों के एक समूह पर भरोसा कर रहे हैं और उनकी शुरुआती कटौती लागत कम करने की तुलना में विचारधारा से अधिक प्रेरित प्रतीत होती है।

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