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एक देश एक चुनाव, क्यों लागू करना चाहते हैं पीएम 

नई दिल्ली. वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर देशभर में एक बार फिर बहस छिड़ गई है। ऐसे में हर तरह यही चर्चा है कि आखिरकार इसमें ऐसा क्या है, जो प्रधानमंत्री मोदी इसी लागू करना चाहते हैं। कहा जाता है कि यह चर्चा का विषय नहीं, बल्कि देश की जरूरत है। हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं। इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है।

दरअसल, इसको लेकर पीएम मोदी शुरुआत से मुखर रहे हैं। नवंबर 2020 में पीएम नरेंद्र मोदी ने 80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में कहा था। हालांकि, अब 1 सितंबर को सरकार ने वन नेशन, वन इलेक्शन पर कमेटी बनाई है। इसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे। चर्चा है कि 18 से 22 सितंबर के संसद के विशेष सत्र में इस पर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। ऐसे में हर देशवासी यह जानता चाहता है कि आखिर वन नेशन वन इलेक्शन क्या है? मोदी इसे क्यों लागू करना चाहते हैं?  

फायदा ज्यादा

देश में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं। वन नेशन, वन इलेक्शन यानी पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे। मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभा सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से वोट डालेंगे। इसस न सिर्फ समय बचेगा, बल्कि आर्थिक बोझ भी कम होगा। मालूम हो कि देश के आजादी होने के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं। 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इसके चलते यह परंपरा टूट गई।

वर्ष 2015 में आई रिपोर्ट में भी सिफारिश

अब मोदी सरकार एक बार फिर इसको लेकर आगे बढ़ रही है। मई 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार बनी तो कुछ समय बाद ही वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर बहस शुरू हो गई। लेकिन, दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें कहा था कि अगर देश में एक साथ लोकसभा, विधानसभा के चुनाव होते हैं, तो इससे करोड़ों बचाए जा सकते हैं। बार-बार चुनाव आचार संहिता नहीं लगने से विकास कार्य भी सतत हो सकेंगे। यानी 2015 में ही सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव होने चाहिए। 

कुछ समर्थन में, कुछ रहे विरोध में

इसके बाद पीएम मोदी ने जून 2019 में पहली बार औपचारिक तौर पर विचार विमर्श के लिए सभी दलों की बैठक बुलाई थी, तब केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि देश में कमोबेश हर महीने चुनाव होते हैं, उसमें खर्चा होता है। आचार संहिता के कारण कई प्रशासनिक काम भी रुक जाते हैं। हालांकि, कुछ दल इसके समर्थन में दिखे, लेकिन कई दलों ने विरोध दर्ज कराया था।

कमेटी की रिपोर्ट पर निर्भर

वर्ष 2020 में पीएम मोदी ने एक सम्मेलन में वन नेशन, वन इलेक्शन को देश की जरूरत बताया था। अब फिर मोदी सरकार ने एक कमेटी बनाने का फैसला किया है, जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे। ये कमेटी इस मसले पर सभी स्टेक होल्डर्स से राय लेकर रिपोर्ट तैयार करेगी।

यह है कानूनी विकल्प

विशेषज्ञों की मानें तो वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर दो अहम बाते हैं, इनमें पहला संसद कानून बना सकती है या इसके लिए दो-तिहाई राज्यों की रजामंदी की जरूरत होगी। ऐसे में अगर बाकी राज्यों से सहमति लेने की जरूरत हुई तो ज्यादातर गैर बीजेपी सरकारें इसका विरोध करेंगी। सिर्फ संसद से पारित कराकर कानून बनाना संभव हुआ, तो भी कई मुश्किलें होंगी। इनमें एक साथ चुनाव कब कराया जाए? जिन राज्यों में अभी चुनाव हुए उनका क्या होगा? क्या इन सरकारों को बर्खास्त कर दिया जाएगा? यानी कानूनी तौर पर कई अड़चनें हैं। ऐसे में दूसरे राज्यों की सहमति बहुत जरूरी है। हालांकि, मतभेद इतना ज्यादा है कि ये मुमकिन नहीं लगता। बताया जाता है कि कई राज्यों में दल विरोध के साथ सुप्रीम कोर्ट में भी जा सकते हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

फिर भी पहल क्यों

जानकारों की मानें तो केंद्र सरकार को देखना होगा कि वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करना कितना मुश्किल है। जैसे ही बीजेपी संसद में इसको लेकर बिल लाएगी, तमाम विपक्षी दल इसका विरोध करेंगे। इसके जरिए बीजेपी लोकसभा चुनाव में जनता के बीच ये मुद्दा लेकर जा सकती है। यानी उम्मीद यह भी है कि बीजेपी इसे चुनावी मुदृदे के रूप में इस्तेमाल कर। यानी बज बीजेपी कहेगी कि हम देश का पैसा बचाने के लिए ऐसा करना चाहते थे, जबकि विपक्षी दलों ने हमें ऐसा करने से रोक दिया। हालांकि,पीएम मोदी की कार्यशैली को देखकर इसकी उम्मीद कम है। बतौर उदाहरण समझें तो संविधान के आर्टिकल 370 के खत्म होने से भले कश्मीर में कुछ नहीं बदला हो, लेकिन देश में पीएम मोदी धाक जमाने में सफल रहे हैं।   

धीरे—धीरे कम होता खर्च

देश की सभी विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं, तो इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में बड़ी कमी आएगी। अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। ये खर्चा इसलिए क्योंकि ईवीएम ज्यादा लगानी पड़ेंगी। इसमें ये भी कहा गया था कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो 2024 में 1,751 करोड़ का खर्च बढ़ता। यानी, धीरे-धीरे ये एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाता। 

इसलिए कोविंद को बड़ी जिम्मेदारी

रामनाथ कोविंद 1 अक्टूबर 1945 को कानपुर की डेरापुर तहसील के परौंख गांव में जन्मे। 1977 में तब PM रहे मोरारजी देसाई के पर्सनल सेक्रेटरी बने। 1978 में कोविंद सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर अपॉइंट हुए। 1980 से 1993 के बीच सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की स्टैंडिंग काउंसिल में भी रहे। कोविंद 1994 से 2000 तक और उसके बाद 2000 से 2006 तक राज्यसभा सदस्य रहे। अगस्त 2015 में बिहार के गवर्नर अपॉइंट हुए। रामनाथ कोविंद बीजेपी का दलित चेहरा रहे हैं। वे दलित बीजेपी मोर्चा के अध्यक्ष रहे हैं। ऑल इंडिया कोली समाज के प्रेसिडेंट रहे हैं। कोविंद बीजेपी के नेशनल स्पोक्सपर्सन रह चुके हैं, लेकिन वे लाइमलाइट से इतने दूर रहते थे कि प्रवक्ता रहने के दौरान कभी भी टीवी पर नहीं आए। रामनाथ कोविंद 25 जुलाई 2017 को भारत के राष्ट्रपति चुने गए और 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। रामनाथ कोविंद के पास राजनीति और कानून दोनों की समझ है।  मोदी सरकार से उनका तालमेल अच्छा है। वन नेशन, वन इलेक्शन की कमेटी में उनकी नियुक्ति को अन्य विपक्षी पार्टियां भी नहीं खुलकर विरोध नहीं कर पाएंगी, क्योंकि वो दलित चेहरा और देश के राष्ट्रपति रह चुके हैं।

लागू करने की ​प्रक्रिया

बताया जाता है कि विधि आयोग ने इस बारे में संशोधनों के विवरण के साथ अप्रैल, 2018 में पब्लिक नोटिस जारी किया था। आयोग का मानना है कि वन नेशन, वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है। संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार, ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है, लेकिन ‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत हर राज्य की विधानसभा के अधिकार और कार्यक्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए इस मामले में सभी राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेने की जरूरत पड़ सकती है। इसके बाद जनप्रतिनिधित्व कानून समेत कई दूसरे कानून में संशोधन करने होंगे। 30 अगस्त 2018 में न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने भी कहा कि संविधान के मौजूदा ढांचे के तहत देश में वन नेशन, वन इलेक्शन नहीं करा सकते हैं। इसके लिए संविधान का जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में बदलाव की जरूरत होगी। लोकसभा व विधानसभाओं के संचालन के लिए बने नियमों में भी संशोधन करना होगा। 

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