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महाकुंभ विशेष: नागा साधु क्यों निकालते हैं शाही बारात? 

प्रयागराज. हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2025 का महाकुंभ 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) से शुरू होगा और 26 फरवरी (महाशिवरात्रि) को समाप्त होगा। यह आयोजन न केवल करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, बल्कि साधु-संतों और विशेष रूप से नागा साधुओं की भव्य उपस्थिति से भी प्रसिद्ध है। महाकुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण नागा साधुओं की शाही बारात होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के लिए कैलाश से अपने ससुराल गए थे, तब उनकी बारात बेहद भव्य और अद्वितीय थी। इस बारात में तीनों लोकों के देवी-देवता, सुर-असुर, गंधर्व, यक्ष-यक्षिणी और साधु-संत शामिल थे। यह बारात अब तक की सबसे बड़ी और भव्य मानी जाती है।

जब भगवान शिव विवाह के बाद कैलाश लौटे, तो वहां नागा साधु उनके स्वागत के लिए खड़े थे, लेकिन वे बारात में शामिल न हो पाने के कारण दुखी थे। उनकी भावना देखकर भगवान शिव ने उन्हें वचन दिया कि भविष्य में उन्हें भी शाही बारात निकालने का अवसर मिलेगा।

महाकुंभ में शाही बारात का आरंभ

कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान अमृत की प्राप्ति हुई और पहली बार महाकुंभ का आयोजन हुआ, तो भगवान शिव की प्रेरणा से नागा साधुओं ने शाही बारात निकालकर इस आयोजन की शुरुआत की। इस बारात में नागा साधु भस्म, रुद्राक्ष और फूलों से सजकर शामिल हुए, जो शिवभक्ति और त्याग का प्रतीक है।

शाही बारात का आध्यात्मिक महत्व

महाकुंभ में नागा साधुओं की शाही बारात को देखना बेहद शुभ माना जाता है। यह दर्शाता है कि भगवान शिव की कृपा आप पर बनी हुई है। नागा साधुओं की यह परंपरा शिवभक्ति, त्याग और साधना का प्रतीक है, जो महाकुंभ के मुख्य आकर्षणों में से एक है।

महाकुंभ का यह आयोजन पौराणिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अनूठा संगम है और नागा साधुओं की शाही बारात इस आयोजन की गरिमा को और भी बढ़ा देती है।
 

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