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ज्ञानवापी के ASI सर्वे को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर के ASI सर्वे की अनुमति दे दी है। मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने की कोई जरूरत नहीं लगती।

दरअसल, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारडीवाला और मनोज कुमार मिश्रा की बेंच ने काफी देर तक वाराणसी की अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के लिए पेश वरिष्ठ वकील हुजैफा अहमदी की दलीलों को सुना। अहमदी ने इमारत को नुकसान पहुंचने की आशंका जताई, लेकिन जजों ने कहा कि ASI इमारत को नुकसान पहुंचाए बिना सर्वे करने का हलफनामा दे चुका है।

अहमदी ने यह भी कहा कि बात सिर्फ ढांचे को नुकसान पहुंचने तक सीमित नहीं है। यह सर्वे होना ही नहीं चाहिए। इस तरह का सर्वे करवाना पुराने जख्म को कुरेदने जैसा होगा। प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत सभी धार्मिक इमारतों को 1947 वाले स्वरूप को बनाए रखने की बात कही गई है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि यह दलील आप निचली अदालत में दे सकते हैं, लेकिन अभी इसके आधार पर तथ्यों की जांच के आदेश पर रोक नहीं लगाई जा सकती।

आस्था को निराधार नहीं कह सकते

मस्जिद पक्ष के वकील ने इसके बाद कहा कि क्या इस तरह किसी भी निराधार याचिका पर वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दिया जाना सही है? चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ उन्हें तुरंत रोकते हुए कहा कि आप जिस बात को निराधार कह रहे हैं, वह दूसरे पक्ष के लिए आस्था हो सकती है आखिर हम इस पर टिप्पणी क्यों करें?

चीफ जस्टिस ने कहा कि निचली अदालत के जज किसी भी स्टेज पर तथ्यों की पड़ताल के लिए वैज्ञानिक जांच का आदेश दे सकते हैं। सर्वे की रिपोर्ट को कभी भी मुकदमे का अंतिम निष्कर्ष नहीं माना जाता है। वह रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाती है और दोनों पक्ष उस पर बहस करते हैं इसलिए, हमें इस आदेश में दखल की कोई जरूरत दिखाई नहीं देती।

सच सामने आने में क्या समस्या है?

कोर्ट ने यूपी सरकार और एएसआई के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और हिंदू पक्ष के लिए पेश वरिष्ठ वकील माधवी दीवान की भी दलीलों को सुना। दीवान ने कहा कि एक तरफ तो मस्जिद पक्ष ज्ञानवापी परिसर में देवी देवताओं की मौजूदगी के हमारे दावे को कल्पना बताता है, दूसरी तरफ सर्वे का विरोध भी करता है। आखिर यह दोनों तरह की बातें कैसे कर सकते हैं? अगर हमारी बातें कल्पना है, तो सच सामने आने देने में उन्हें क्या समस्या है?

सर्वे रिपोर्ट की गोपनीयता पर आदेश नहीं

हुजैफा अहमदी की तरफ से सर्वे के विरोध में लगातार दी जा रही थी। दलीलों के मद्देनजर बेंच के सदस्य जस्टिस पारदडीवाला ने सुझाव दिया कि ASI की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में ही कोर्ट को सौंपने का आदेश दिया जा सकता है, जिससे वह फिलहाल सार्वजनिक न हो सके। इस पर अहमदी उस समय तो सहमत नहीं हुए, लेकिन सुनवाई के अंत में जब यह साफ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट सर्वे पर रोक नहीं लगाने जा रहा है, तब उन्होंने बार-बार यह कहा कि कम से कम सर्वे की रिपोर्ट को गोपनीय बनाए रखने का आदेश दे दिया जाए। पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे औपचारिक आदेश में शामिल नहीं किया।

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