एमपी की 'लाडली बहनों' के चेहरे पर आएगी मुस्कान, खाते में आने वाली है किस्त जानें कब निकाल सकती हैं?
नई दिल्ली. देवकीनंदन ठाकुर इन दिनों वक्फ बोर्ड की तरह सनातन बोर्ड की मांग को लेकर चर्चा के बीच है। उन्होंने बताया कि सनातन बोर्ड क्या है और इसकी जरूरत क्यों हैं, उनसे सवाल किया गया कि वक्फ बोर्ड की तरह सनातन बोर्ड की मांग क्यों की जा रही है, इससे धर्म की रक्षा कैसे होगी और आखिरकार क्या है। इस पर उन्होंने अपना तर्क दिया।
ठाकुर ने कहा, मैं सनातनियों को एक बात कहना चाहता हूं कि वक्क बोर्ड सिर्फ जमीन की देखरेख करता है, वह एक जमीन का बोर्ड है, जो जमीन की देखरेख करेगा और वक्फ बोर्ड को जो पावर मिली हुई हैं, उन्होंने कहा कि संसद हमारा है। एयरपोर्ट हमारा है, लेकिन सनातन किसी का छीनता नहीं है। सबको बांटता है।
बोर्ड में मंदिरों, तीर्थों की सुरक्षा होगी, प्रॉपर्टी डीलर नहीं
उनसे सवाल किया गया कि आप कहते हैं कि वक्फ बोर्ड मनमानी करता है और प्रॉपर्टी डीलर की तरह काम करता है, तो आप खुद ऐसे क्यों बनना चाहते हैं? उन्होंने सनातन बोर्ड का महत्व समझाते हुए कहा कि हम ऐसा सनातन बोर्ड चाहते हैं, जिसमें हम अपने मंदिर, मंदिर की व्यवस्था और पूजा स्थल और तीर्थों की सुरक्षा कर सकें। अगर सनातन धर्म बनेगा, तो उसमें सारे मंदिर और देवालय आएंगे। उस धन का सदुपयोग ये होगा कि हम लोग हॉस्पिटल, गौशाला बनाएंगे और अपने संस्कारी बच्चों को संस्कार देंगे।
एक अन्य सवाल कि वह सरकार के नियंत्रण से बाहर निकलना चाहते हैं? तब उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि डबल इंजन की सरकार कब तक और कौन-कौन से प्रदेश में रहेंगी। हम चाहते हैं कि मंदिरों की, पूजा की, वेद की सभी की व्यवस्था हमारे धर्माचार्यों और शंकराचार्यों के हाथ में होनी चाहिए। किसी ऑफिसर या नेता के हाथ में नहीं होनी चाहिए।
रामकथा के लिए मैंने कभी पैसे नहीं लिए
इसी बीच देवकीनंदन से सवाल किया, मुझे कहीं पढ़ने को मिला कि गोस्वामी तुलसीदास, जिन्होंने रामचरित मानस लिखी तो उन्होंने किसी से कोई पैसा नहीं कमाया, लेकिन उनकी कथा सुनाकर आप 8 से 10 लाख रुपए चार्ज कर रहे हैं। अगर ऐसा है? उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने कभी कथा सुनाने के 8 रुपए भी चार्ज नहीं किए। 8 लाख तो बहुत दूर की बात है।
देवकीनंदन ने कहा, आप इस नजरिए से एक कथा को देख रहे हैं कि एक कथावाचक ने कथा कि और 10, 20, 50 लाख रुपए खर्च हो गए, लेकिन आप ये नहीं देख रहे कि जब एक कथा हुई, तो उसके जरिए कितने लोगों को काम मिला। एक टेंट वाले को काम मिला, माइक वालों को काम मिला, फल वालों को काम मिला। आप सोच भी नहीं सकते कि कितने लोगों को काम मिला।
कथा के लिए चार्ज नहीं, टीम की मेहनत का है भुगतान
इस पर जब उनसे पूछा गया कि अगर आप चार्ज न करें तो काम उन्हें फिर भी मिलेगा और अगर आप चार्ज नहीं करते तो 8 से 10 लाख रुपए कहां जाते हैं? उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि मेरे पास 50 से 60 लोगों की टीम होती है और उन 50-60 लोगों का भी परिवार है। उनमें जो मेरे सात तबला बजा रहा है, गा रहा है, बाजा बजा रहा है तो जो कथा कराने के लिए बुलाते हैं, वह उन्हीं को देते हैं। मुझे नहीं देते।
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