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पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह नहीं रहे  

नई दिल्ली. डॉ. मनमोहन सिंह अपने आखिरी सफर पर निकल चुके हैं। 92 साल के मनमोहन ने 26 दिसंबर की रात 9:51 बजे दिल्ली AIIMS में अंतिम सांस ली। AIIMS के मुताबिक अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद रात 8:06 बजे गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल लाया गया था। ​उनके निधन पर शुक्रवार सुबह राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस चेयरपर्सन सोनिया गांधी, राहुल गांधी सहित वरिष्ठ नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की। डॉ. मनमोहन का अंतिम संस्कार 28 दिसंबर को राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। इसके पहले केंद्र सरकार ने 7 दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। 

देश के 14वें प्रधानमंत्री रहे मनमोहन बेहद कम बोलते थे। हालांकि, आधार, मनरेगा, RTI, राइट टु एजुकेशन जैसी स्कीम्स उनके कार्यकाल में ही लॉन्च हुईं, जो आज बेहद कारगर साबित हो रही हैं। मनमोहन पहचान राजनेता से ज्यादा अर्थशास्त्री के तौर पर रही। देश की इकोनॉमी को नाजुक दौर से निकालने का क्रेडिट भी उन्हें दिया जाता है। कम ही लोगों को पता है कि डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री आवास में रहने के बावजूद खुद को आम आदमी कहते थे। उन्हें सरकारी BMW से ज्यादा अपनी मारुति 800 पसंद थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी किताब में लिखा था- जब मनमोहन बोलते हैं तो पूरी दुनिया सुनती है।

दादा-दादी ने पाला, लालटेन में पढ़े

मनमोहन सिंह पाकिस्तान से विस्थापित होकर हल्द्वानी आए थे। बचपन में मां का निधन हो गया। दादा-दादी ने पाला। गांव में लालटेन की रोशनी में पढ़ाई की। पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बनें इसलिए प्री-मेडिकल कोर्स में दाखिला लिया। हालांकि, कुछ महीनों बाद ही उन्होंने कोर्स छोड़ दिया। मनमोहन सिंह की शुरुआती पढ़ाई उर्दू में हुई थी। जब प्रधानमंत्री बने, तब भी स्पीच की स्क्रिप्ट उर्दू में ही लिखते थे। कई बार गुरुमुखी में भी लिखी।

ऑक्सफोर्ड से योजना आयोग तक

1948 में मैट्रिक की। कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। करियर की शुरुआत पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में शिक्षक के रूप में की। वर्ष 1971 में वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने। 1972 में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार बने।

1985 से 1987 योजना आयोग के प्रमुख और 1982 से 1985 रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। पीवी नरसिम्हा राव ने 1991 में वित्त मंत्री बनाया। 2018 में कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे। उनका कार्यकाल अप्रैल, 2024 में समाप्त हुआ था।

हमेशा नीली पगड़ी क्यों पहनते थे मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह अक्सर नीली पगड़ी पहनते थे। इसके पीछे क्या राज था, ये उन्होंने 11 अक्टूबर 2006 को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में खोला था। उन्हें ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग, प्रिंस फिलिप ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था। तब प्रिंस फिलिप ने अपने भाषण में कहा था, 'आप उनकी पगड़ी के रंग पर ध्यान दे सकते हैं।'

इस पर मनमोहन सिंह ने कहा कि नीला रंग उनके अल्मा मेटर कैम्ब्रिज का प्रतीक है। कैम्ब्रिज में बिताए मेरे दिनों की यादें बहुत गहरी हैं। हल्का नीला रंग मेरा पसंदीदा है इसलिए यह अक्सर मेरी पगड़ी पर दिखाई देता है। ​​

आर्थिक सुधारों के लिए जाने जाते हैं मनमोहन

डॉ. मनमोहन सिंह की सुझाई नीतियों से देश में आर्थिक सुधार के दरवाजे खुले। 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई में कांग्रेस सरकार बनी थी, तब वित्त मंत्री की कमान डॉ. मनमोहन सिंह ने संभाली। उस वक्त देश की माली हालत खराब थी। विदेशी मुद्रा भंडार 1 अरब डॉलर रह गया था।

पूर्ववर्ती चंद्रशेखर सरकार को तेल-उर्वरक के आयात के लिए 40 करोड़ डॉलर जुटाने के लिए 46.91 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान में गिरवी रखना पड़ा था। उसी दौर में मनमोहन सिंह उदारीकरण की नीति लेकर आए।

24 जुलाई, 1991 का दिन भारत की आर्थिक आजादी का दिन कहा जाता है। इस दिन पेश बजट ने भारत में नई उदार अर्थव्यवस्था की नींव रखी। डॉ. सिंह ने बजट में लाइसेंस राज को खत्म करते हुए, कंपनियों को कई तरह के प्रतिबंधों से मुक्त किया था।

आयात-निर्यात नीति बदली गई थी, जिसका उद्देश्य आयात लाइसेंसिंग में ढील और निर्यात को बढ़ावा देना था। यही नहीं, विदेशी निवेश के रास्ते खोल दिए गए। सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए आयकर अधिनियम की धारा 80 Hhc के तहत टैक्स में छूट की घोषणा भी की।

इस महत्वपूर्ण बजट को आधुनिक भारत के इतिहास में सबसे बड़ी घटनाओं में से एक माना जाता है। डॉ. सिंह की आर्थिक नीतियों का ही कमाल था कि दो साल यानी 1993 में ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1 अरब डॉलर से बढ़कर 10 अरब डॉलर हो गया। यही नहीं, 1998 में यह 290 अरब डॉलर तक पहुंच गया था।

सोनिया के खिलाफ जाकर न्यूक्लियर डील साइन की

मनमोहन सिंह की दूसरी बड़ी उपलब्धि अमेरिका के साथ परमाणु करार थी। जनवरी, 2014 में आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इसे अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया था।

2006 में डॉ. मनमोहन सिंह ने वॉशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ न्यूक्लियर डील साइन की। इसके जरिए परमाणु व्यापार को लेकर भारत का 30 साल का वनवास खत्म हो रहा था। 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने तमाम प्रतिबंध लगा दिए थे।

इस डील के विरोध में लेफ्ट पार्टियों ने UPA सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उस समय लेफ्ट के पास तकरीबन 60 सांसद थे। समर्थन वापसी की बात पर सोनिया डील वापस लेने की बात करने लगीं। हालांकि, शुरुआत में वे इसके समर्थन में थीं।

सरकार को सदन में विश्वास मत से गुजरना पड़ा। मनमोहन ने अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीति का भीष्म बताते हुए अंतरात्मा की आवाज पर समर्थन मांगा। वाजपेयी ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन मुस्कुरा दिए। मनमोहन सिंह की सरकार ने सपा नेता अमर सिंह की मदद से 19 वोटों से विश्वास मत जीत लिया।

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