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वक्फ काननू के खिलाफ जल्द हो सुनवाई: कोर्ट पहुंचे सिब्बल को CJI ने याद दिलाया सिस्टम

नई दिल्ली. राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने वक्फ काननू पर सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई का अनुरोध किया है। इसके बाद चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कपिल सिब्बल और अन्य को आश्वासन दिया कि वह याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर निर्णय लेंगे। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर गौर किया। पीठ ने कहा कि याचिकाओं को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कई अन्य याचिकाएं पहले ही दायर की जा चुकी हैं।

क्या बोले CJI?

चीफ जस्टिस ने कहा, मैं दोपहर में उल्लेख पत्र देखूंगा और निर्णय लूंगा। हम इसे सूचीबद्ध करेंगे। जल्द सुनवाई के अनुरोध को लेकर व्यवस्था बनी हुई है। आपको यहां इसे रखने की कोई जरूरत नहीं थी। मैं दोपहर को इन अनुरोधों को देख कर सुनवाई पर फैसला लूंगा

गौरतलब है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने शनिवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी, जिसे पहले दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद संसद द्वारा पारित किया गया था। 

'देश के संविधान पर हमला है कानून'

अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं, जिनमें समस्त केरल जमीयतुल उलेमा की एक याचिका भी शामिल है, सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई हैं। अपनी याचिका में, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने कहा है कि यह कानून देश के संविधान पर सीधा हमला है, जो न केवल अपने नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है, बल्कि उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता भी प्रदान करता है।'

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने आगे कहा, यह विधेयक मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की एक खतरनाक साजिश है। इसलिए, हमने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है, और जमीयत उलमा-ए-हिंद की राज्य इकाइयां भी अपने-अपने राज्यों के उच्च न्यायालयों में इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देंगी।

वक्फ कानून के खिलाफ होगा विरोध प्रदर्शन

संसद के दोनों सदनों से पारित होते ही इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। अभी तक 6 याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं जिनमें इसे संविधान के विरुद्ध और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते चुनौती दी गई है। साथ ही वक्फ कानून के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश भर में विरोध प्रदर्शन करेगा।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ही होगा बहस का केंद्र

याचिकाओं में वक्फ बोर्ड के सदस्यों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का भी विरोध किया गया है। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में होने वाली बहस में धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार ही केंद्र में होगा और सुप्रीम कोर्ट जो व्यवस्था देगा वही लागू भी होगी। लेकिन कानून पर सरकार के तर्क को देखा जाए तो उसके अनुसार यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध नहीं है, बल्कि संपत्तियों के प्रबंधन से संबंधित है।

क्यों लाया गया वक्फ संशोधन कानून?

याचिकाओं में मुसलमानों से भेदभाव का आरोप लगाते हुए कानून को समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14 और 15) का उल्लंघन बताया गया है। जबकि सरकार का तर्क है कि कानून में मुस्लिम महिलाओं के हित संरक्षित किए गए हैं और अनुच्छेद 15 के तहत सरकार को महिलाओं के लिए विशेष प्रविधान करने का अधिकार है।

सरकार कानून को जायज ठहराते हुए तर्क दे रही है कि वक्फ प्रबंधन में चुनौतियों का समाधान करने के लिए व्यवस्थित सुधारों की आवश्यकता थी जिसके लिए वक्फ संशोधन कानून, 2025 लाया गया। इससे पारदर्शिता, जवाबदेही और कानूनी निरीक्षण सुनिश्चित करके, वक्फ संपत्तियां गैर-मुसलमानों और अन्य हितधारकों के अधिकारों का उल्लंघन किए बगैर इच्छित धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति कर सकती हैं।

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