एमपी की 'लाडली बहनों' के चेहरे पर आएगी मुस्कान, खाते में आने वाली है किस्त जानें कब निकाल सकती हैं?
नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद 2018 के सिंभावली शुगर मिल धोखाधड़ी मामले की ओर लोगों का ध्यान फिर से गया है। यह एक कुख्यात वित्तीय घोटाला था, जो लोगों की यादों से काफी हद तक गायब हो चुका था। अपने 22 साल के करियर में बेदाग छवि रखने वाले जस्टिस वर्मा अब जांच के घेरे में हैं, क्योंकि उनके आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना के बाद कथित तौर पर नकदी बरामद की गई है।
इस घटनाक्रम ने उनके पिछले वित्तीय लेन-देन, खासकर सिंभावली शुगर्स लिमिटेड के साथ उनकी संलिप्तता के बारे में सवालों को फिर से खड़ा कर दिया है। सिंभावली शुगर्स लिमिटेड पर करोड़ों रुपए के बैंकिंग फ्रॉड का आरोप है।
2018 के सिंभावली शुगर मिल फ्रॉड
यह मामला फरवरी 2018 का है, जब सीबीआई ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की शिकायत के आधार पर सिंभावली शुगर्स की जांच शुरू की थी। बैंक ने आरोप लगाया कि कंपनी ने किसानों के लिए निर्धारित 97.85 करोड़ रुपए के ऋण का दुरुपयोग किया है, बजाय इसके कि वह धन दूसरे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाए। मई 2015 तक, कंपनी को पहले ही 'संदिग्ध धोखाधड़ी' मामले के रूप में चिह्नित किया जा चुका था और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को इसकी सूचना दी गई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, शिकायत के बाद सीबीआई ने 12 व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसमें कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में यशवंत वर्मा को दसवें आरोपी के रूप में नामित किया गया। आरोपों की गंभीरता के बावजूद मामले दबा दिया गया। वर्मा सहित इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई।
फरवरी 2024 में एक अदालत ने सीबीआई को मामले में अपनी रुकी हुई जांच फिर से शुरू करने का निर्देश दिया। हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, कोई प्रगति होने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्देश को पलट दिया, जिससे सीबीआई की प्रारंभिक जांच (पीई) को तुरंत बंद कर दिया गया। इससे सिंभावली शुगर्स और उसके निदेशकों से जुड़ी वित्तीय अनियमितताओं की किसी भी जांच पर प्रभावी रूप से रोक लग गई। हाल ही में जस्टिस वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद उनके वित्तीय इतिहास और सिंभावली शुगर्स मामले में उनकी कथित भूमिका को लेकर नई चिंताएं उभरी हैं।
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