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निचली अदालतों में वीसी के जरिए होगी सुनवाई: सीजेआई

नई दिल्ली. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि सर्वोच्च अदालत देश की सभी निचली अदालतों में वर्चुअल सुनवाई को संभव करने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए अपना क्लाउड सॉफ्टवेयर स्थापित कर रहा है। 

दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने सुझाव दिया कि क्या प्रौद्योगिकी-संचालित हाइब्रिड सुनवाई को जिला न्यायपालिका तक भी बढ़ाया जा सकता है। यदि आप इस (आभासी सुनवाई) मुफस्सिल अदालतों सहित निचली अदालतों तक ले जा सकें। यह सबसे बड़ा योगदान होगा। 

वकील दवे के तर्क के बाद सीजेआई न्‍यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि ईकोर्ट्स (प्रोजेक्ट) के तीसरे चरण में हमारे पास एक बड़ा बजट है, इसलिए हम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए अपना खुद का क्लाउड सॉफ्टवेयर स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने याद किया कि कैसे राज्य सरकारें अदालतों में न्यायिक बुनियादी ढांचे के लिए धन उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, कुछ राज्य सरकारें बहुत सहयोग कर रही हैं, दूसरों के बारे में आपको पता है… मुझे याद है महामारी के समय, मैं उच्च न्यायालय का नाम नहीं लूँगा। उनके पास इन वीडियो (कॉन्फ्रेंसिंग) प्लेटफार्मों के लाइसेंस के लिए भुगतान के लिए पैसे नहीं थे। 

लॉकडाउन में वीडी का प्रयोग

सीजेआई ने कहा, वे (वह हाईकोर्ट) बिल्कुल गंभीर स्थिति में थे। लॉकडाउन था और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बिना अदालत चलाना असंभव था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपना वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग लाइसेंस उन्हें स्थानांतरित कर दिया। हालिया संबोधन में सीजेआई ने कहा था कि महामारी के दौरान देशभर की अदालतों ने वर्चुअल मोड के माध्यम से 4.3 करोड़ सुनवाई की। उन्होंने कहा कि इन आभासी सुनवाई से विशेष रूप से महिला वकीलों को मदद मिली, क्योंकि अन्यथा उन्हें घरेलू काम और देखभाल की लिंग संबंधी मांगों के कारण अदालत में शारीरिक रूप से पेश होने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। 

वीसी के जरिए 3.37 लाख मामलों की सुनवाई

सीजेआई चंद्रचूड़ ने पूर्व में बताया था कि 23 मार्च 2020 और 31 अक्टूबर 2022 के बीच सुप्रीम कोर्ट ने अकेले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 3.37 लाख मामलों की सुनवाई की। वर्चुअल सुनवाई को मौलिक अधिकारों का हिस्सा घोषित करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने इस बात पर जोर दिया था कि तकनीक सिर्फ महामारी के लिए नहीं है और उच्च न्यायालयों को वकीलों की भौतिक उपस्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।

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