
नेपाल। विद्रोही नेता से राजनेता बने ओली राजनीतिक स्थिरता नहीं दे पाएकाठमांडू। ओली ने अपने युवावस्था में छात्र कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में प्रवेश किया और अब समाप्त हो चुकी राजशाही का विरोध करने के लिए 14 साल जेल में बिताए। वे पहली बार अक्टूबर 2015 में नेपाल के प्रधानमंत्री बने। अपने 11 महीने के कार्यकाल के दौरान काठमांडू और नई दिल्ली के संबंध तनावपूर्ण हो गए। उन्होंने नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए भारत की सार्वजनिक रूप से आलोचना की और अपनी सरकार को गिराने का आरोप लगाया। हालांकि, दूसरी बार सत्ता में आने से पहले उन्होंने आर्थिक समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ने के लिए भारत के साथ साझेदारी करने का वादा किया।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!ओली दूसरी बार फरवरी 2018 में प्रधानमंत्री बने, जब सीपीएन (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) और प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन (माओवादी सेंटर) के गठबंधन ने 2017 के चुनावों में प्रतिनिधि सभा में बहुमत हासिल किया। जीत के बाद दोनों पार्टियों ने मई 2018 में औपचारिक रूप से विलय कर लिया।
अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान ओली ने दावा किया कि नेपाल के राजनीतिक नक्शे में तीन महत्वपूर्ण भारतीय क्षेत्रों को शामिल करने के बाद उनकी सरकार को हटाने की कोशिश की जा रही थी, जिससे दोनों देशों के बीच संबंध खराब हो गए।
भारत ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्रों को शामिल करते हुए नेपाल के नए राजनीतिक नक्शे को “अस्वीकार्य” बताया, जिसे नेपाल की संसद ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी थी। भारत का दावा है कि ये क्षेत्र उसके हैं।
ओली ने पार्टी के भीतर अपने विरोधियों पर सरकार गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाया। उन्होंने 5 फरवरी 2018 से 13 मई 2021 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने 13 मई 2021 से 13 जुलाई 2021 तक भी पद पर बने रहे। तत्कालीन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी द्वारा नियुक्ति के कारण, जिसे स्थानीय मीडिया ने ओली की चालाकी की सफलता बताया।
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि प्रधानमंत्री पद पर ओली का दावा असंवैधानिक था। 22 फरवरी 1952 को पूर्वी नेपाल के तेरहथुम जिले में जन्मे ओली, मोहन प्रसाद और मधुमाया ओली के सबसे बड़े बेटे हैं। उनकी मां चेचक से मर गईं, जिसके बाद उनकी दादी ने उनकी परवरिश की।
उन्होंने 9वीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ दिया और राजनीति में शामिल हो गए। हालांकि, उन्होंने बाद में जेल से ही आर्ट्स में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। उनकी पत्नी रचना शाक्य भी कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हैं और दोनों पार्टी की गतिविधियों के दौरान मिले थे।
ओली ने 1966 में छात्र कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया और राजा के सीधे शासन वाले तानाशाही पंचायत सिस्टम के खिलाफ आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने फरवरी 1970 में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन की। पार्टी की सदस्यता लेने के कुछ ही समय बाद वे अंडरग्राउंड हो गए। उसी साल पंचायत सरकार ने उन्हें पहली बार गिरफ्तार कर लिया।
1971 में उन्होंने झापा विद्रोह की अगुवाई की, जिसकी शुरुआत जिले में जमींदारों की गर्दन काटकर की गई थी। ओली नेपाल के उन कुछ राजनीतिक नेताओं में से हैं, जिन्होंने कई साल जेल में बिताए। उन्हें 1973 से 1987 तक लगातार 14 साल जेल में रखा गया। जेल से रिहा होने के बाद वे 1990 तक लुम्बिनी ज़ोन के प्रभारी के रूप में UML के सेंट्रल कमेटी के सदस्य बने।
1990 के लोकतांत्रिक आंदोलन के बाद जिसने पंचायत शासन को खत्म कर दिया, ओली देश में एक लोकप्रिय नाम बन गए। 1991 में वे प्रजातांत्रिक राष्ट्रीय युवा संघ के संस्थापक अध्यक्ष बने। एक साल बाद वे पार्टी के प्रचार विभाग के प्रमुख बने और नेपाली राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे। 1991 में वे पहली बार झापा जिले से प्रतिनिधि सभा के सदस्य चुने गए।
ओली 1994 और 1995 में गृह मंत्री भी रहे। 1999 में वे झापा निर्वाचन क्षेत्र संख्या 2 से फिर से प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए। दूसरे जन आंदोलन की सफलता के बाद 2006 में गिरिजा प्रसाद कोइराला की अंतरिम सरकार में वे उप-प्रधानमंत्री भी रहे। ओली को 4 फरवरी 2014 को दूसरी संविधान सभा में सीपीएन-यूएमएल संसदीय दल का नेता चुना गया था और अक्टूबर 2015 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी स्थिति और मजबूत हो गई।