
भोपाल। धूल भरी सड़कों और ट्रैफिक जाम के कारण मध्य प्रदेश की राजधानी की वायु गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है, जिससे भोपाल नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) सर्वेक्षण 2025 में पीछे रह गया। इस सर्वेक्षण में भोपाल देश में छठे और मध्य प्रदेश में तीसरे स्थान पर रहा, जो देवास और जबलपुर जैसे छोटे शहरों से भी पीछे है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!नगर निगम के दावों के बावजूद सर्वेक्षण से पता चलता है कि भोपाल की वायु गुणवत्ता अभी भी खराब है, जबकि इंदौर ने एक बार फिर पहला स्थान हासिल किया है। वायु गुणवत्ता में सुधार के दावों के बावजूद भोपाल सर्वेक्षण में आगे नहीं बढ़ सका और देश में छठा और मध्य प्रदेश में तीसरा स्थान ही हासिल कर सका, जो पिछले साल भी यही था।
सर्वेक्षण के अनुसार, भोपाल को 200 में से 191 अंक मिले, लेकिन ट्रैफिक जाम, टूटी सड़कों से उड़ती धूल और कचरा जलाने जैसी समस्याएं बनी रहीं, जिससे कोई खास सुधार नहीं हुआ। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) के अधिकारियों ने दावा किया कि शहर का AQI पिछले साल की तुलना में 3-4% बेहतर हुआ है, लेकिन नतीजे कुछ और ही बताते हैं।
भोपाल के पीछे रहने के कारण
कम PUC अनुपालन
15 लाख से अधिक पंजीकृत वाहनों के मुकाबले केवल 20 सक्रिय PUC चेकपॉइंट हैं, जिससे लगभग 80% वाहन बिना वैध PUC प्रमाण—पत्र के चलते हैं।
बढ़ते ट्रैफिक जाम
सड़क बुनियादी ढांचा वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ नहीं बढ़ा है, जिससे ट्रैफिक जाम और सिग्नल पर वाहनों के इंजन चालू रहने से प्रदूषण बढ़ा है।
धूल और कचरा जलाना
वाहनों से निकलने वाला धुआं, गड्ढों वाली सड़कों से उड़ती धूल और खुले में कचरा और फसल अवशेष जलाना प्रदूषण के प्रमुख स्रोत बने हुए हैं।
स्वच्छ ईंधन में बदलाव अधूरा
उद्योगों में कोयला भट्ठियों को पूरी तरह बंद नहीं किया गया, जबकि CNG, PNG और इलेक्ट्रिक बसों को बढ़ाने की योजनाएं कागजों पर ही हैं।
कमज़ोर हरित पहल
अभियान के तहत लगाए गए पौधे ठीक से नहीं पनपे, जबकि उद्योगों ने सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में देरी की।
लोगों में जागरूकता की कमी
ट्रैफिक सिग्नल पर इंजन बंद करने जैसे छोटे उपाय भी नहीं किए गए।
करोड़ों खर्च, कोई नतीजा नहीं
केंद्र सरकार ने भोपाल की वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए छह साल में NCAP के तहत 242.56 करोड़ रुपये जारी किए, जिसमें से 195.01 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन, PM स्तर सहित वायु गुणवत्ता सूचक पांच साल पहले की तुलना में और खराब हो गए हैं। आलोचकों का आरोप है कि नगर निगम से जुड़े एनजीओ ने मुनाफा कमाने के लिए कागजों पर तो खूब काम दिखाया, लेकिन प्रदूषण के स्तर पर कोई खास असर नहीं हुआ।
इंदौर ने फिर से पहला स्थान हासिल किया, भोपाल की स्थिति जस की तस
इंदौर जो लगातार तीन साल तक लिस्ट में पहले स्थान पर रहने के बाद 2024 में सातवें स्थान पर आ गया था, इस साल फिर से पहले स्थान पर आ गया। हालांकि, भोपाल इंदौर की तुलना में बेहतर हरा-भरा क्षेत्र और जलस्रोत होने के बावजूद 2022 से छठे स्थान पर ही है।
रैंकिंग की विश्वसनीयता पर सवाल
पर्यावरणविद डॉ. सुभाष सी. पांडेय ने रैंकिंग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। उनका कहना है कि इंदौर की तेजी से बढ़ती इमारतें और पेड़ों की कटाई से उसकी वायु गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ना चाहिए था। उन्होंने यह भी कहा कि सैंपल लेने के समय मौसम की स्थिति के आधार पर सर्वे के नतीजे अलग हो सकते हैं।