
भोपाल। आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने कोर्ट के आदेश के बाद भी राज्य के सबसे बड़े वित्तीय घोटाले की फिर से जांच नहीं की है। ऐसा लगता है कि एजेंसी ने मामले को दबा दिया है। ईओडब्ल्यू ने ई-टेंडर घोटाले के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विशेष न्यायाधीश के समक्ष क्लोजर रिपोर्ट पेश की। कोर्ट ने पिछले साल 24 दिसंबर को क्लोजर एप्लीकेशन को रद्द कर दिया और एजेंसी को मामले की फिर से जांच करने को कहा।
कोर्ट के आदेश जारी हुए छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन ईओडब्ल्यू ने अभी तक जांच शुरू नहीं की है। कोर्ट ने कुछ बिंदु भी तय किए हैं और एजेंसी को उसी के अनुसार मामले की फिर से जांच करने को कहा है।
अदालत ने एजेंसी से बीपीएन लॉग से संबंधित साक्ष्य संकलित करने और एमपी स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एमपीएसईडीसी) को 29 मार्च, 2019 को लिखे गए पत्र के बारे में जानकारी एकत्र करने को कहा।
अदालत ने एजेंसी को आईपी एड्रेस और इंटरनेट सेवा प्रदाता के ज़रिए सबूत जुटाने का भी निर्देश दिया। एजेंसी को मुख्य अभियंता के कार्यालय से लॉग विवरण जुटाने और मामले में और सबूत संलग्न करने के लिए भी कहा गया।
जीवीपीआर इंजीनियर्स लिमिटेड के निदेशकों के अलावा, इंडियन ह्यूमन पाइप लिमिटेड, जेएमसी प्रोजेक्ट्स लिमिटेड, राजकुमार नरवानी, माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड, मैक्स मेटाना माइक्रो जीवी, हैदराबाद और कुछ पूर्व सरकारी अधिकारियों को मामले में पक्ष बनाया गया था।
सूत्रों के अनुसार, अदालत के आदेश के बावजूद ईओडब्ल्यू ने मामले की फिर से जांच नहीं की। न ही एमपीएसईडीसी को कोई पत्र लिखा। एजेंसी ने कोर्ट के आदेश के अनुसार जानकारी जुटाने की कोई पहल नहीं की। ई-टेंडर घोटाला 2018 में सामने आया था। तत्कालीन मुख्य सचिव बीपी सिंह ने मामले की जांच के लिए ईओडब्ल्यू को पत्र लिखा था।
सूत्रों के मुताबिक घोटाला 3000 करोड़ रुपए का है। एजेंसी द्वारा मामले की सही पैरवी न करने पर कोर्ट ने 23 नवंबर 2022 को सभी आरोपियों को बरी कर दिया। जांच एजेंसी घोटाले की जांच करने में विफल रही। कोर्ट के आदेश के बाद भी एजेंसी जांच को लेकर लापरवाही बरत रही है।