
नई दिल्ली। मनमोहन सिंह सरकार में गृह मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने बड़ा खुलासा किया है। चिदंबरम ने कहा है कि 26/11 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद उन्होंने भी जवाबी कार्रवाई पर विचार किया था, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सैन्य कार्रवाई न करने का फैसला किया।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!2008 के मुंबई आतंकी हमलों के 17 साल बाद पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री ने मंगलवार को एक समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई न करने का फैसला अंतरराष्ट्रीय दबाव और विदेश मंत्रालय के रुख के कारण लिया गया था।
मुंबई हमलों में 175 लोगों की जान चली गई थी। 60 घंटों तक 10 आतंकवादियों ने मुंबई की सड़कों, ताज होटल, सीएसटी रेलवे स्टेशन, नरीमन हाउस और कामा अस्पताल को निशाना बनाया और अंधाधुंध गोलीबारी की।
चिदंबरम ने समाचार चैनल को बताया, “पूरी दुनिया से दबाव था। हमें युद्ध न करने के लिए समझाया जा रहा था। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री दिल्ली आए और कहा, ‘कृपया कार्रवाई न करें।’ बिना कोई आधिकारिक राज बताए, मैं स्वीकार करता हूं कि मुझमें बदले की भावना थी।”
“मैंने प्रधानमंत्री और अन्य ज़िम्मेदार लोगों से जवाबी कार्रवाई पर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने हमले के दौरान ही इस पर चर्चा की थी। विदेश मंत्रालय का मानना था कि सीधा हमला नहीं किया जाना चाहिए। इसके बाद सरकार ने कार्रवाई न करने का फ़ैसला किया।”
भाजपा ने कहा, “उस समय देश को सही तरीक़े से नहीं संभाला गया।”
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस इंटरव्यू की एक क्लिप X पर शेयर की। उन्होंने लिखा, “पूर्व गृह मंत्री ने स्वीकार किया है कि देश को पहले से ही पता था कि मुंबई हमलों को विदेशी ताकतों के दबाव के कारण सही तरीक़े से नहीं संभाला गया था।” भाजपा प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने आरोप लगाया कि मुंबई हमलों के बाद चिदंबरम शुरुआत में गृह मंत्री का पद संभालने से हिचकिचा रहे थे। वह पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई चाहते थे, लेकिन दूसरे लोग उनकी बात मान गए।
हमले के बाद सुरक्षा बलों ने तीन दिनों तक आतंकवादियों से लड़ाई लड़ी और नौ आतंकवादियों को मार गिराया। एक आतंकवादी, अजमल कसाब, ज़िंदा पकड़ा गया। कसाब को हमले के अगले दिन 27 नवंबर को जुहू चौपाटी से गिरफ्तार किया गया। जनवरी 2009 में एक विशेष अदालत में मुकदमा शुरू हुआ।
25 फ़रवरी, 2009 को पहला 11,000 पन्नों का आरोप पत्र दायर किया गया। इस दौरान कसाब के नाबालिग होने को लेकर विवाद जारी रहा। मामले की सुनवाई मार्च 2010 में समाप्त हुई।
3 मई, 2010 को अदालत ने अपना फैसला सुनाया, जिसमें कसाब को 26/11 के हमलों का दोषी पाया गया और 6 मई को उसे मौत की सजा सुनाई गई। 2011 में, यह मामला बॉम्बे उच्च न्यायालय में गया, जिसने विशेष अदालत के फैसले को बरकरार रखा।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी कसाब को कोई राहत नहीं दी और उसकी मौत की सजा को बरकरार रखा। कसाब ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के समक्ष दया याचिका दायर की, जिसे राष्ट्रपति ने 5 नवंबर को खारिज कर दिया।
मुंबई हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को अप्रैल में भारत प्रत्यर्पित किया
2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को इस साल अप्रैल में संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया गया था। तहव्वुर राणा को अक्टूबर 2009 में अमेरिका के शिकागो में एफबीआई ने गिरफ्तार किया था। उस पर 26/11 के मुंबई और कोपेनहेगन आतंकवादी हमलों के लिए साजो-सामान मुहैया कराने का आरोप था। मुंबई हमले के मास्टरमाइंड डेविड हेडली की गवाही के आधार पर तहव्वुर राणा को 14 साल जेल की सजा सुनाई गई थी।
राणा के भारत प्रत्यर्पण के संबंध में पी. चिदंबरम ने यह भी कहा कि इस मामले में पिछली सरकार श्रेय की हकदार है। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार जो कर रही है उसका श्रेय ले सकती है, लेकिन उन्हें पिछली सरकार को भी श्रेय देना चाहिए, जिसने इससे कहीं ज़्यादा किया था।
कांग्रेस ने दावा किया है कि तहव्वुर राणा को भारत लाने की प्रक्रिया 2009 में यूपीए शासन के दौरान शुरू हुई थी, इसलिए एनडीए सरकार को इसका सारा श्रेय नहीं लेना चाहिए।