नई दिल्ली। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है कि “जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए शुरू किया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार एक ‘गलत तरीका’ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस गलती की कीमत अपनी जान देकर चुकाई। हालांकि, यह फैसला सिर्फ़ इंदिरा गांधी का नहीं था। सेना, पुलिस, ख़ुफ़िया और प्रशासनिक अधिकारी भी इसमें शामिल थे।”
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!ऑपरेशन ब्लू स्टार पर पिछले छह महीनों में यह दूसरा बड़ा बयान है। इससे पहले, 4 मई को कांग्रेस नेता राहुल गांधी का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे कहते नज़र आ रहे थे कि 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार एक गलती थी। “मैं 1980 के दशक में कांग्रेस पार्टी द्वारा की गई किसी भी गलती की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हूँ।”
इंडिया एक्सप्रेस के अनुसार, चिदंबरम शनिवार को हिमाचल प्रदेश के कसौली पहुँचे। उन्होंने खुशवंत सिंह साहित्य महोत्सव में पत्रकार हरिंदर बावेजा की पुस्तक “दे विल शूट यू, मैडम” पर एक परिचर्चा में भाग लिया। बावेजा ने कहा, “इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम देने के अपने फैसले की कीमत अपनी जान देकर चुकाई।”
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए चिदंबरम ने कहा, “किसी भी सैन्य अधिकारी का अपमान किए बिना, मैं कहना चाहता हूँ कि स्वर्ण मंदिर को पुनः प्राप्त करने का यह गलत तरीका था। कुछ साल बाद, हमने सेना के बिना इसे पुनः प्राप्त करने का सही तरीका दिखाया। ब्लू स्टार गलत रास्ता था। मेरा मानना है कि श्रीमती गांधी ने उस गलती की कीमत अपनी जान देकर चुकाई।”
अपनी पुस्तक पर चर्चा के दौरान चिदंबरम ने कहा, “पंजाब की अपनी यात्राओं के दौरान, मुझे एहसास हुआ कि खालिस्तान या अलगाव की राजनीतिक माँग लगभग समाप्त हो चुकी है। आज मुख्य समस्या आर्थिक है… अवैध प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या पंजाब से है।”
सिख विरोधी दंगों में 3,000 से ज्यादा सिख मारे गए
जरनैल सिंह भिंडरावाले दमदमी टकसाल, एक कट्टरपंथी सिख धार्मिक समूह के प्रमुख थे। 13 अप्रैल, 1978 को बैसाखी के दिन निरंकारी समुदाय का एक समागम हुआ। इस जुलूस के विरोध में भिंडरावाले ने दरबार साहिब के पास पारंपरिक सिखों की एक सभा बुलाई और एक उग्र भाषण दिया।
इसके बाद अखंड कीर्तनी जत्थे और दमदमी टकसाल के सदस्यों का एक जुलूस निरंकारियों की ओर बढ़ा। इस झड़प में 13 सिख और 2 निरंकारी मारे गए। 24 अप्रैल, 1980 को निरंकारी संप्रदाय के नेता गुरबचन सिंह की दिल्ली स्थित उनके घर पर हत्या कर दी गई। अगले वर्ष, पंजाब केसरी के संस्थापक और संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई। भिंडरावाले और उसके नए राजनीतिक दल, दल खालसा पर इन हत्याओं का आरोप लगाया गया।
1982 में भिंडरावाले ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास गुरु नानक निवास की स्थापना की। अकाल तख्त मंदिर के ठीक सामने है। यहीं से भिंडरावाले ने सिखों को कट्टरपंथी उपदेश और आदेश देना शुरू किया।
केंद्रीय कांग्रेस सरकार ने 1982 और 1984 के बीच कई बार भिंडरावाले को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन असफल रही। अप्रैल 1983 में डीआईजी ए.एस. अटवाल की स्वर्ण मंदिर परिसर में सरेआम हत्या कर दी गई। इसके बाद स्थिति बिगड़ने पर अक्टूबर 1983 में पंजाब विधानसभा भंग कर दी गई और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
दिसंबर 1983 में भिंडरावाले अकाल तख्त में घुस गया। 27 मई, 1984 को शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने भी भिंडरावाले को मनाने की कोशिश की, लेकिन जब ये कोशिशें नाकाम रहीं, तो सैन्य अभियान ही एकमात्र विकल्प बचा।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस पूरे अभियान में 300 से 400 लोग मारे गए, जबकि 90 सैनिक शहीद हुए। हालाँकि, प्रत्यक्षदर्शियों और घटना को करीब से देखने वालों का मानना है कि लगभग 1,000 लोग मारे गए और 250 सैनिक शहीद हुए।