
नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हुई 56वीं जीएसटी परिषद की बैठक में वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था में व्यापक बदलाव को मंज़ूरी दे दी गई है, जिसके तहत 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत की सरलीकृत दो-स्लैब संरचना लागू की गई है। सर्वसम्मति से लिए गए इस फ़ैसले को 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से सबसे महत्वपूर्ण सुधारों में से एक माना जा रहा है। आधिकारिक अनुमान के अनुसार, स्लैब में बदलाव से 93,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होने की उम्मीद है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!नए ढांचे के तहत, मौजूदा 12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत कर स्लैब को समाप्त कर दिया जाएगा, और इन श्रेणियों के अंतर्गत आने वाली ज़्यादातर वस्तुएं अब 5 प्रतिशत या 18 प्रतिशत के स्लैब में आ जाएंगी। हेयर ऑयल, साबुन, टूथपेस्ट, साइकिल और टेबलवेयर जैसी आम इस्तेमाल की चीज़ें सस्ती हो जाएंगी, जबकि पनीर और ब्रेड जैसी ज़रूरी चीज़ों को पूरी तरह से कर-मुक्त कर दिया गया है। गैर-ज़रूरी और उच्च मूल्य वाली वस्तुएँ मानक 18 प्रतिशत की दर के दायरे में आएंगी, जिससे सामर्थ्य और राजस्व के बीच एक व्यापक संतुलन सुनिश्चित होगा।
तंबाकू उत्पाद, गुटखा, सिगरेट और पान मसाला जैसी तथाकथित “नशा वाली” वस्तुओं के लिए एक अलग 40 प्रतिशत स्लैब भी पेश किया गया है। उच्च दर का उद्देश्य उपभोग को हतोत्साहित करना और समग्र दर कटौती से होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई में मदद करना है।
नई दरें त्योहारी सीज़न से ठीक पहले 22 सितंबर से लागू होंगी। हालांकि, नशा और विलासिता की वस्तुओं पर भारी कर से लगभग 45,000 करोड़ रुपए की वसूली होने की उम्मीद है। राज्यों को इस कमी की भरपाई करने पर चर्चा अभी तक नहीं हो पाई है, कुछ राज्य सरकारों ने अपनी वित्तीय स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता जताई है।
उद्योग जगत के जानकारों का कहना है कि नए ढांचे से खपत को खासकर एफएमसीजी, ऑटोमोटिव और उपभोक्ता उपकरण क्षेत्रों में बहुत ज़रूरी बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि रोज़मर्रा की वस्तुओं की कम कीमतों से घरेलू खर्च को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। जहां राज्य और व्यवसाय इस बदलाव की तैयारी कर रहे हैं, वहीं इस सुधार को भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल बनाने और इसे और अधिक उपभोक्ता-अनुकूल बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम के रूप में देखा जा रहा है।