
भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार के पास मंत्रियों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। कार्मिक विभाग आईएएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच करता है। गृह विभाग आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ जांच करता है और वन विभाग आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच करता है, लेकिन राज्य सरकार के पास इस बात को लेकर स्पष्टता नहीं है कि मंत्रियों के खिलाफ शिकायतों की जांच कौन करेगा।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!दरअसल, पूर्व विधायक किशोर समरीते द्वारा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) की मंत्री सम्पतिया उइके के खिलाफ शिकायत किए जाने के बाद इस मामले ने बहस को जन्म दे दिया है। शिकायत के बाद मंत्री के खिलाफ जांच के आदेश दिए गए। शिकायत को प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा गया। पीएमओ ने शिकायत को मुख्य सचिव के कार्यालय को भेजा, जिसने इसे पीएचईडी के प्रमुख सचिव (पीएस) को भेज दिया।
पत्र के आधार पर पीएस ने शिकायत को इंजीनियर-इन-चीफ (ई-इन-सी) को भेज दिया, जिन्होंने दो अधिकारियों को मामले की जांच करने का निर्देश दिया। ई-इन-सी के पास शिकायत की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन सरकार इस बारे में कुछ नहीं कह पा रही है कि ऐसे मामलों में क्या कार्रवाई की जानी चाहिए। सूत्रों के मुताबिक सरकार आने वाले दिनों में ऐसे मामलों से निपटने के लिए दिशा-निर्देश तय कर सकती है।
मंत्री भी लोक सेवक की परिभाषा में आते हैं। उनके खिलाफ शिकायतें लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू को भेजी जा सकती हैं। लेकिन किसी भी जांच एजेंसी को शिकायत भेजने से पहले धारा 17ए के तहत सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। फिर भी स्पष्ट प्रावधान हैं कि यदि मंत्री व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो जांच एजेंसियों को किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
दूसरी ओर सरकार के पास मंत्री के खिलाफ जांच बैठाने का कोई अधिकार नहीं है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, सरकार इस बारे में स्पष्ट नहीं है कि शिकायत की जांच के लिए मंत्री के खिलाफ किस तरह की जांच बैठाई जाए, लेकिन यदि किसी मंत्री के खिलाफ कोई शिकायत है, तो उसे मुख्यमंत्री के पास भेजा जा सकता है, जो इस मुद्दे पर निर्णय ले सकते हैं।