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पार्लियामेंट में एआई और सोशल मीडिया के प्रयोग जोर: बिडला

नई दिल्ली. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि अगले वर्ष भारत में होने वाले राष्ट्रमंडल देशों की संसदों के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों (सीएसपीओसी) के 28वें सम्मेलन में एआई और सोशल मीडिया के संसदों के कामकाज में प्रयोग पर जोर दिया जाएगा। उन्होंने 10 जनवरी को ग्वेर्नसे में राष्ट्रमंडल के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन (सीएसपीओसी) की स्थायी समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए ये बात कही। 

बिड़ला ने बताया कि भारत अब पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप के लिए तीसरा सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र बन गया है। उन्होंने कहा कि भारत में कृषि, फिनटेक, एआई और अनुसंधान एवं नवाचार जैसे कई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर परिवर्तन हो रहे हैं। भारत के विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे और सेवा क्षेत्र के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने गणमान्य व्यक्तियों को 28वें सीएसपीओसी के लिए भारत में आमंत्रित किया, जहां वे देश की विरासत और प्रगति के अनूठे मिश्रण का अनुभव कर सकेंगे। 

लोकतंत्र के संरक्षक, विकास और लोक कल्याण के वाहक के रूप में संसदों की भूमिका पर जोर देते हुए, श्री बिरला ने जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और साइबर अपराध जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए संसदों को अधिक प्रभावी, समावेशी और पारदर्शी बनाने के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने सुशासन और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिए संसदीय संस्थानों को अधिक प्रभावी, समावेशी और पारदर्शी बनाने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। सत्र के ज़रिए गंभीर वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और 28वें सीएसपीओसी का आधार तैयार करने के लिए संसदीय नेता एक मंच पर साथ आए, जिसकी मेजबानी भारत 2026 में करेगा। 

बिरला ने सीएसपीओसी मंच को सदस्य देशों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान करने, संसदीय सहयोग को मजबूत करने और सामूहिक रूप से न्यायसंगत भविष्य के निर्माण की दिशा में काम करने के एक अमूल्य अवसर के रूप में वर्णित किया। उन्होंने साल 2026 में 28वें सीएसपीओसी के लिए मेजबान के रूप में भारत के चयन पर भी खुशी व्यक्त जताते हुए कहा कि यह देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और समावेशिता तथा सद्भाव की सदियों पुरानी परंपराओं को प्रदर्शित करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। श्री बिड़ला ने वैश्विक सहयोग और एकता के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में वसुधैव कुटुंबकम के प्राचीन भारतीय दर्शन "पूरी दुनिया एक परिवार है" की प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया।

सतत् विकास और सुशासन को बढ़ावा देते हुए गरीबी, असमानता और कुपोषण जैसी चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए संसदों की आवश्यकता को दोहराते हुए बिरला ने नीतियों को आकार देने, संसाधनों को विवेकपूर्ण ढंग से आवंटित करने और भविष्य में अधिक न्यायसंगत और टिकाऊ निर्माण में सरकारों का मार्गदर्शन करने में सांसदों की भूमिका पर भी जोर दिया। बैठक के दौरान चर्चा में भारत में आगामी 28वें सीएसपीओसी के एजेंडे को अंतिम रूप देना और दुनिया भर की संसदों को प्रभावित करने वाले प्रणालीगत मुद्दों पर विचार-विमर्श करना शामिल था। लोकभा अध्यक्ष ने 1970-71, 1986 और 2010 में सीएसपीओसी सहित ऐसे कार्यक्रमों की मेजबानी करने की भारत की दीर्घकालिक परंपरा के बारे में जानकारी दी और सभी राष्ट्रमंडल पीठासीन अधिकारियों को नई दिल्ली में सम्मेलन में भाग लेने के लिए निमंत्रण दिया।

बिड़ला ने भरोसा जताया कि आगामी कार्यक्रम, महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिए सार्थक संवाद और सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा देगा। ओम बिड़ला ने ग्वेर्नसे के बेलीविक के पीठासीन अधिकारी, महामहिम सर रिचर्ड मैकमोहन को उनके अनुकरणीय नेतृत्व और आतिथ्य के लिए आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम का समापन किया। बैठक में समकालीन चुनौतियों से निपटने और लोकतंत्र और सुशासन के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए राष्ट्रमंडल संसदों की साझा प्रतिबद्धता जताई गई।

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