
भोपाल। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) ने शुक्रवार शाम राज्य सेवा परीक्षा-2024 के अंतिम परिणाम घोषित कर दिए। शीर्ष 13 में 5 महिलाएं हैं। इसमें 13 पद डिप्टी कलेक्टर के थे। इसमें 8 पुरुष और 5 महिलाओं का चयन हुआ। आयोग ने अभी 87 प्रतिशत पदों की पदवार सूची जारी की है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!बता दें कि राज्य सेवा मुख्य परीक्षा (2024) 21 से 26 अक्टूबर तक आयोजित की गई थी। ये परीक्षाएं 110 पदों के लिए आयोजित की गई थीं। इसमें तीन हजार से ज्यादा अभ्यर्थी शामिल हुए थे। 110 पदों में से 102 पदों को 87 प्रतिशत के फॉर्मूले में रखा गया है, जिसमें 306 अभ्यर्थी सफल हुए। वहीं, 13 प्रतिशत प्रोविजनल परिणाम श्रेणी में कुल 8 पद रखे गए हैं। इसके लिए 33 अभ्यर्थी सफल हुए। साक्षात्कार के लिए 339 अभ्यर्थियों का चयन हुआ।
सागर के ऋषभ दूसरे स्थान पर आकर डिप्टी कलेक्टर बने। दूसरे स्थान पर आने वाले ऋषभ सागर के देवरी निवासी हैं। उन्होंने इंदौर के जीएससीसी से बीए और एमए किया। कोरोना काल में उन्होंने देवरी से ही पीएससी की तैयारी शुरू की। यह उनका पहला मेन्स और इंटरव्यू था। इसमें वे 945.50 अंक प्राप्त कर दूसरे स्थान पर आकर डिप्टी कलेक्टर बने हैं। ऋषभ के पिता सेवानिवृत्त होमगार्ड प्लाटून कमांडर हैं और माता गृहिणी हैं।
इंदौर की हर्षिता महिलाओं में टॉपर परीक्षा में महिलाओं में टॉप करने वाली और मेरिट में 5वें स्थान पर रहीं हर्षिता दवे साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे की बेटी हैं और वे भी इंदौर की ही रहने वाली हैं। उन्होंने बीए और एमए किया है। मां एक निजी स्कूल में शिक्षिका हैं। यह उनका दूसरा प्रयास था। इससे पहले उन्होंने 2023 का प्री दिया था। इस बार उन्होंने मेन्स और इंटरव्यू दोनों दिए और पांचवां स्थान प्राप्त किया।
शीर्ष 13 छात्र
1- देवांशु शिवहरे- कुल अंक 953
2- ऋषव अवस्थी- 945.50 अंक
3- अंकित 942 अंक
4- शुभम – 913 अंक
5- हर्षिता दवे- 893.75 अंक
6- रुचि जाट- 891 अंक
7- नम्रता जैन- 890 अंक
8- गिर्राज परिहार- 859.75 अंक
9- स्वर्णा दीवान-833.75 अंक
10- विक्रमदेव सरायम-765.50 अंक
11- शिवानी सिरमचे-761.50 अंक
12- जतिन ठाकुर- 759.75 अंक
13- हिमांशु सोनी- 716 अंक नोट (1685 अंकों में से)
13% पद रखने का कारण
साल 2019 से पहले एमपी में सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 14 फीसदी का आरक्षण मिलता था. एसटी को 20% और एससी को 20%, ओबीसी को 16% आरक्षण दिया गया। शेष 50% पद अनारक्षित वर्ग से भरे गए। यानी आरक्षण की सीमा 50% थी। 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया। इससे आरक्षण की सीमा 63 प्रतिशत हो गई।
आरक्षण की इस बढ़ी हुई सीमा को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। 20 जनवरी 2020 को कोर्ट ने 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगा दी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ओबीसी को पहले की तरह भर्तियों में 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए।
हाईकोर्ट ने यह आदेश 1992 में इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर दिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी राज्य में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। इस फैसले के बाद, मध्य प्रदेश सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए याचिका दायर की।
इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर याचिका पर अपना रुख स्पष्ट नहीं कर देता, तब तक हाईकोर्ट भी इस पर सुनवाई नहीं करेगा।