भोपाल। जबलपुर हाईकोर्ट ने शहडोल कलेक्टर पर 2 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। कलेक्टर डॉ. केदार सिंह ने एक अपराधी के बजाय एक निर्दोष युवक के नाम पर रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) लगाने का आदेश जारी किया। नतीजतन, युवक को एक साल से ज्यादा समय जेल में बिताना पड़ा।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!दरअसल, यह मामला शहडोल निवासी सुशांत बैस से जुड़ा है। सुशांत के पिता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद सच्चाई सामने आई और निर्दोष युवक को जेल से रिहा कर दिया गया। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस एके सिंह की बेंच ने मामले की जांच के आदेश दिए और फैसला सुनाया कि कलेक्टर को अपनी जेब से यह राशि चुकानी होगी।
कोर्ट ने कहा, यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
दरअसल, शहडोल के पुलिस अधीक्षक ने नीरजकांत द्विवेदी नाम के एक अपराधी पर रासुका लगाने की सिफ़ारिश की थी। कलेक्टर ने सुशांत बैस के नाम पर यह आदेश जारी किया। इसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अदालत ने पीड़ित के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए कलेक्टर डॉ. केदार सिंह पर जुर्माना लगाया। साथ ही, मामले के समर्थन में झूठे दस्तावेज़, झूठी जानकारी और झूठा हलफनामा पेश करने के लिए अवमानना कार्यवाही का भी आदेश दिया। कलेक्टर को 25 नवंबर को पेश होने का निर्देश दिया गया।
पिता ने याचिका दायर कर कार्रवाई को गलत बताया
शहडोल जिले के ब्यावरी स्थित समान गांव निवासी हीरा मणि बैस ने याचिका में कहा कि शहडोल कलेक्टर ने 9 सितंबर, 2024 को उनके बेटे सुशांत के खिलाफ गलत तरीके से रासुका की कार्रवाई की थी। पुलिस अधीक्षक ने रासुका की कार्रवाई के लिए नीरजकांत द्विवेदी को पत्र लिखा था। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि रासुका उन्हें जेल में रखने के दुर्भावना से लगाया गया था। यह प्रक्रिया एक ही दिन में पूरी कर ली गई। अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीजे) की अदालत ने मामले में सुशांत को जमानत दे दी।
सुशांत के जेल से रिहा होते ही उनके खिलाफ रासुका की कार्रवाई की गई। इसके बाद हर तीन महीने में रासुका की अवधि बढ़ाई जाती रही। एक साल जेल में बिताने के बाद उन्हें सितंबर 2025 में जेल से रिहा किया गया।
वकील ने कहा, हाईकोर्ट में झूठा हलफनामा पेश किया
याचिकाकर्ता की ओर से ब्रह्मान्द्र प्रसाद पाठक ने कहा कि शहडोल कलेक्टर ने न केवल मनमाने ढंग से आदेश पारित किया, बल्कि गलत तथ्यों के साथ झूठे दस्तावेज़ भी हाईकोर्ट में पेश किए। इसके अलावा आदेश के समर्थन में पेश किया गया हलफनामा भी झूठा था। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और सभी दस्तावेजों की जांच के बाद पाया कि याचिकाकर्ता सही था।
कोर्ट ने कहा, “आदेश क्लर्क लिख रहा है, आप उस पर हस्ताक्षर कर रहे”
कोर्ट ने यह भी पाया कि अपर मुख्य सचिव द्वारा पेश किए गए हलफनामे में कहा गया था कि यह उनके क्लर्क राकेश तिवारी की टाइपिंग त्रुटि थी। उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और विभागीय जांच शुरू की गई। अपर मुख्य सचिव के बयान पर हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “यह और भी गंभीर है कि आदेश क्लर्क लिख रहा है और आप उस पर हस्ताक्षर करते हैं। अब जब मामला आपके पास आ गया है, तो आप एक क्लर्क को बलि का बकरा बना रहे हैं।” इस पूरे मामले पर हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को अपने स्तर पर गृह विभाग के एसीएस और शहडोल कलेक्टर के खिलाफ विभागीय जांच करने का आदेश दिया है।